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बीना मिश्रा की कविताओं से गुजरते हुए एक अजीब सी अनुभूति होती है। मानो कि वर्तमान और अतीत एक बिंदु पर मिलकर दूर कहीं क्षितिज में देख रहे हों।
और इस अनुभूति से जिज्ञासु पाठक अनजाने ही खुद को जोड़ता हुआ भविष्य की राह टटालने लगता है। इन कविताओं में कोई बीहड़ नहीं है जहाँ गुम हो जाने का ख़तरा हो। इन कविताओं में एक पगडंडी है, जो राह दिखाती है।
भले ही कोई उदास कविता क्यों न हो! तब भी उसमें एक प्रण या एक आशा छिपी हुई दिखाई देती है।
'प्रिय मेरा उद्धार करे' कविता लय और गति से भरपूर है।
'मेरे मन को तुम ही भाए' कविता में एक ईमानदार प्रियतमा की पुकार की सहज बानगी देखिये…
'घृणा जन-जन की सह लूँगी
जो बाहुपाश में ले लो तुम।'
कहते हैं कि प्रेम तभी समृद्ध होता है जबकि वो कुछ देता है, लेता नहीं।
इसको प्रत्यक्षतः ‘और न कुछ अपनाऊँगी' कविता में देखा जा सकता है।
"तेरी थाती तुझको दे दूँ
लेकर निर्वाण न पाऊँगी,
पाथेय बनी स्मृति तेरी
और न कुछ अपनाऊँगी।"
'आदमी का भीतर-बाहर' विकल्पों की तलाश करती कविता है।
'मनु ! कितनी बार?' आदिपुरुष मनु से सवाल करती हुई विलक्षण कविता है।
"विडम्बना' कविता दैनंदिन जीवन और मानसिक विडम्बना का कितना सटीक उदाहरण है...
"मूर्ख है हथेली, शायद निष्कपट
बार-बार उसे स्वयं में बाँधती है।"
'मन यायावर' दरअसल मनु की त्रासदी की ही प्रतीक कविता नहीं है वरन् मन को बड़े सटीक अंदाज़ में व्याख्यायित भी करती है।
सिद्धांतवादी व्यक्ति की एकांकी लड़ाई को 'बाएँ हाथ का भय' नामक अनूठे शीर्षक से लिखा गया है।
वस्तुतः बीना मिश्रा प्रेम कविताएँ कहते-कहते अचानक जीवन के विभिन्न पहलुओं को छू लेती हैं। यही उनके कहन की गहराई है।
यदि एक पृष्ठ पर 'फिर एक नया निर्माण दो' जैसी प्रेम रस में आकण्ठ डूबी कविता है तो उससे सटे हुए पृष्ठ पर 'अपना-अपना समर' जैसी कविता भी है। जिसमें घर को प्रतिमान बनाकर गरीब जीवन की दुर्दशा को अनोखे अंदाज़ में कहा गया है।
'सखि मैं कैसे धीर धरूँ' कविता एक अलग ही भावभूमि पर लिखी गई काव्य-रचना है। यद्यपि प्रथम दृष्ट्या इस कविता को पढ़कर मैथिलीशरण गुप्त की कविता 'सखि वे मुझसे कहकर जाते' भी याद आ जाती है।
"इस महाकाश के पार कोई
है मेरा प्रियतम अनाकार!"
अहा!
कितनी विराट कल्पना, कितने सूक्ष्म रूप में। 'अब वियोग मिट जाएगा' कविता से ली गई हैं उक्त काव्य पंक्तियाँ।
इसके ठीक उलट 'जानती हूँ' कविता अतृप्ति और लालसाओं के खण्डित होने की कविता है।
जबकि 'पुनः वही प्रश्न' कविता, अतीत में जाकर अहिल्या के पाषाण होने का प्रश्न वर्तमान संदर्भो में उठाती है।
वहीं 'कौन कथित हत्यारा है' कविता निर्मम यथार्थ के यक्ष प्रश्न समेटे है। कवि के स्वयं के अंतर्विरोध की बानगी देखिये कि 'जानती हूँ' के ठीक विपरीत भाव 'मैं अनंत उन्मादिनी' कविता में दृष्टिगत होता है।
'राम नहीं आएँगे' साकार और निराकार को जोड़ती कविता है जो अचेतना के पाषाण और अहिल्या की प्रतीक्षा को बड़े मार्मिक रूप में उभारती है।
एक बड़ी ही अलग सी कविता है 'ये कैसे कलाकार' जो कि कलाकार की (अ) संवेदनशीलता पर प्रश्न उठाती है।
समेकित रूप में बीना मिश्रा की कविताओं पर उनके व्यक्तित्व की छाप है। व्यक्तित्व, जिसमें भारतीयता कूट-कूट कर भरी हुई है। आप मूलतः उत्तरप्रदेश की हैं। जन्म कलकत्ता में हुआ और वर्तमान में गोवा के एक प्रतिष्ठित विद्यालय में हिंदी भाषा की प्राध्यापिका हैं। वर्तमान इंटरनेट प्रधान उच्च तकनीक के इस दौर में, आप गोवा में हिंदी-काव्य को समृद्ध कर रही हैं।
आपकी कविताएँ शुद्ध भाषा में रचित हैं और गौरवमयी हिंदी काव्य-धारा की याद दिलाती हैं।
मैं सुश्री बीना मिश्रा के पहले काव्य-संग्रह पर हार्दिक बधाई देते हुए उनके उज्ज्वल साहित्यिक भविष्य की शुभकामनाएँ देता हूँ।
7 मई 2019 अक्षय तृतीया |
हृषीकेश वैद्य
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Fiction Book Features | |
Author | : Beena Mishra |
Fiction book Type | : Literature |
Key Feature | |
Brand | : Other Manufacturer |
Books Specification | |
Binding | : Paper Back |
Language | : Hindi |
Number of Pages | : 86 |
More Details |
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Maximum Retail Price (inclusive of all taxes) | Rs.180 |
Common or Generic Name | - |
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